ईश्वर

है नाथ वैसे तो माध्यम मानव का इजात किया हुआ है अपने भावो को लिखने का मगर रास्ता कोई भी हो वार्तालाप का आप तक जरूर पहुंच ही जाता है। 



शायद आपकी बनाई इस धरती पर आपके अनुरूप अब कुछ भी नहीं हो रहा है।

 नोट:-  " में ये लिख रहा हूं। मगर में खुद भी ऐसा नहीं कि जिसने कभी कोई गलत काम ना किया हो बहुत गलत काम किए है। "  

और जो आपके रास्ते को मानने वाले है। उनको भी कोई जगह ये समाज नहीं दे रहा है और धर्म के आस्था के नाम पर लोगों द्वारा पाखंड किए जा रहे है पैसे कमाने के अनेक साधन जुटा लिए गए है। नये नये तरीकों से लोगो को आस्था के नाम पर वर्गलया जा रहा है।

ख़ैर ये आदत ये भाव तो आपने ही मनुष्य में दिए है आपना पेट भरने को अब कोई सही राह चुनता है कोई गलत ये उस व्यक्ति की अपनी निजी सोच होती है । 

मगर वहीं आपका मनुष्य भी आपसे बहुत पिछड़ गया है न जाने क्यों। दीवाली होली या कोई भी त्योहार हो मनुष्य उसका जश्न तो जरूर मानता है मगर उसके पीछे छिपे आपके संदेशों को समझने और उन्हें अपने जीवन में लागू नहीं करता है।

 अनेकों उदाहरण आपके द्वारा इस धरती पर बार बार अवतरित होकर ऐसे अनमोल उपदेश दिए जा चुके है जिसकी कल्पना मात्र से आपके अलौकिक स्वरूप का बोध हो जाता है किन्तु फिर भी मनुष्य आपसे इतना अलग इतना दूर क्यों है।

अनेकों कथाएं धर्म को मानवता को परिभाषित करते हुए आपके ही द्वारा प्रतिपदित है। चाहे वो आपका राम अवतार हो चाहे कृष्ण अवतार या माता दुर्गा के रूप में महिषासुर का वध या उस ज्ञानी रावण का जिसने आपकी उपासना कर सहस्त्र माया और शक्ति को जुटाया था।

मगर उसका अंत भी आपके हाथों संभव हुए क्यों की वो आप ही का दास था अहंकार वश अधर्म की ओर अग्रसर हुआ जिसका परिणाम उसे अपने अंत के समय में समझ आ गया था और आपको ही प्रणाम करते हुए वो अपने प्राण जो कि आप ही का अंश है उसे त्याग आप ही में समा गया था।


हे जगतनाथ आख़िर इतनी लीलाओं के बाद भी क्यों हम मनुष्य माया और लोभ और मोह के इस अंधकार रूपी जाल में फसे है। क्यों कण कण में बसे आप को नहीं पहचानते और आपकी बनाई इस धरती पर मौजूद प्रकृति जिसमें भी आप ही की स्तिथि  है उसे आपने ऐसे स्वार्थ के लिए नष्ठ कर रहे है जिसका अस्तित्व ही नशवर है। जो अमर नहीं  है जिसे खत्म होना ही है और अपने लिए सुगम बनाने वाले साधन जिनसे उसका अस्तित्व है उन्हें है समाप्त करने में लगा है ये प्रकृति आपकी एक सुंदर देन है जिसकी हालत मनुष्य द्वारा बनाई फैक्ट्री और न जाने कितने ही साधनों से और आपने ऐश और आराम के चलते मानव ने कई नये आविष्कारों को जन्म दिया जिसके चलते प्रकृति विलुप्ति की कगार पर है। इस ब्रह्माण्ड में सभी कुछ आपके द्वारा संचालित है चाहे वो जीवन चक्र हो चाहे समय चक्र सब पर है नाथ आप ही का आधिपत्य है इस बात से ना जाने क्यों मनुष्य वंचित हो कर कुमार्ग की ओर लगातार बढ़ रहा है। ये सभी जानते है कि जिस प्रकार धर्म का पतन हो रहा है और आपके कहे अनुसार आप पुनः कल्कि अवतार में जन्म लेकर इस इस महा अधर्मी युग कल युग का विनाश कर पुनः सत युग की स्थापना की नीव रखेंगे। जो कि आप ही के बनाएं जीवन चक्र के अनुरूप है। अंत में है नाथ ने महाकाल में बस यहीं कहूंगा की इस संसार को आपकी वास्तविक का बोध होते हुए भी आपसे वंचित है आपको नकार रहा है आपकी अलौकिक वास्तविकता को जिसके परे कुछ भी नहीं है उसे मानने से इंकार कर रहा है। क्या सच में यहीं वो कलयुग है जहां आपका दर्शन देना दुर्लब है और आपको मानने वाले नहीं है । ये सभी सवाल मेरे मन के भीतर हमेशा से है। केवल आपसे उत्तर की आशा है। ( शिव ही सत्य है और सत्य ही शिव है )
#शिवभक्त #महाकाल #स्वामी #आराध्य #shiv #godofdestroyVinay Kumar

Comments

TRANSLATE

Popular posts from this blog

मुलाकात

पत्रकारिता का बदलता रूप

जरूरत है बदलाव की....... हमे कुछ करना होगा...