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ईश्वर

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है नाथ वैसे तो माध्यम मानव का इजात किया हुआ है अपने भावो को लिखने का मगर रास्ता कोई भी हो वार्तालाप का आप तक जरूर पहुंच ही जाता है।  शायद आपकी बनाई इस धरती पर आपके अनुरूप अब कुछ भी नहीं हो रहा है।  नोट:-  " में ये लिख रहा हूं। मगर में खुद भी ऐसा नहीं कि जिसने कभी कोई गलत काम ना किया हो बहुत गलत काम किए है। "   और जो आपके रास्ते को मानने वाले है। उनको भी कोई जगह ये समाज नहीं दे रहा है और धर्म के आस्था के नाम पर लोगों द्वारा पाखंड किए जा रहे है पैसे कमाने के अनेक साधन जुटा लिए गए है। नये नये तरीकों से लोगो को आस्था के नाम पर वर्गलया जा रहा है। ख़ैर ये आदत ये भाव तो आपने ही मनुष्य में दिए है आपना पेट भरने को अब कोई सही राह चुनता है कोई गलत ये उस व्यक्ति की अपनी निजी सोच होती है ।  मगर वहीं आपका मनुष्य भी आपसे बहुत पिछड़ गया है न जाने क्यों। दीवाली होली या कोई भी त्योहार हो मनुष्य उसका जश्न तो जरूर मानता है मगर उसके पीछे छिपे आपके संदेशों को समझने और उन्हें अपने जीवन में लागू नहीं करता है।  अनेकों उदाहरण आपके...

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